Roza Rakhne or Kholne Ki Dua: रोज़ा रखने से लेकर रोज़ा खोलने की दुआ यहां जानें (हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में)

रोज़ा रखने से लेकर रोज़ा खोलने की दुआ

रमज़ान एक पवित्र माह है जिसमें मुसलमान उम्मत द्वारा उपवास, ध्यान और दान का माहात्म्यिक समय माना जाता है। इस माह के दौरान, मुसलमान रोज़ा रखते हैं, जिसे इनाम या सवाब के लिए भी जाना जाता है। इसके साथ ही, रमज़ान में दुआओं का बहुत महत्व होता है, जो की उनके रोज़ा रखने और खोलने के समय में पढ़ी जाती है।

रोज़ा रखने और खोलने की दुआ का अर्थ रोज़ा की नियत और इबादत की विशेष दुआओं का विवरण होता है। इन दुआओं को पढ़कर व्यक्ति अपने रोज़े को और अधिक पवित्र बनाता है और अपने ध्यान को भगवान की ओर ध्यानित करता है। ये दुआएं रमज़ान के माह को और भी माहात्म्यिक बनाती हैं और उम्मत को इसके महत्व को समझने में मदद करती हैं।

यह ब्लॉग रोज़ा रखने और खोलने की दुआ के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है ताकि लोग रमज़ान के माह को और भी विशेष और प्रभावी बना सकें। यहां दी गई जानकारी के माध्यम से, लोग रोज़ा के माह को समर्थन और आत्मविश्वास के साथ मनाने में सक्षम होते हैं और इसे अधिक से अधिक उत्तम बनाने का प्रयास करते हैं। यहां दी गई दुआओं को नियमित रूप से पढ़कर, लोग रोज़ाना के इस पावन काम को और भी अधिक समर्थन देते हैं और अपने आत्मिक विकास को साधने के लिए प्रेरित होते हैं।

रोजा रखने की नियत (Roza Rakhne ki Niyat)

रोजा रखने की नियत

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रोजा रखने की नियत में हमारा सही इरादा बहुत महत्वपूर्ण है। रोज़ा रखने के लिए, हमें सिर्फ भूखे रहने की नहीं, बल्कि पाक नियत की जरूरत है। नियत बिना, हमारी इबादत को अल्लाह कभी भी कबूल नहीं करते। इसलिए, सच्चे दिल से रोज़ा रखने की नियत करना बहुत महत्वपूर्ण है। अल्लाह को यह नियत पहले दिखती है, और फिर हमारी इबादत को स्वीकार करते हैं। यदि हमारी नियत पाक है, तो हमें रोज़े रखने का दोगुना सवाब मिलता है।

रोज़ा रखने का तरीका (Roja Rakhne ka Tarika)

रोज़ा रखने का तरीका

रोज़ा रखने का तरीका साधारण होता है। सुबह की नमाज़ से पहले सेहरी खाई जाती है, जो कि रोज़ा रखने की नियत को मजबूत करती है। सेहरी के बाद, फज्र की नमाज़ पढ़ी जाती है और फिर दिन भर के लिए रोज़ा रखा जाता है। रोज़ा के दौरान, खाने पीने की कोई भी चीज़ मना है, और अगर कोई भी इसे तोड़ता है, तो उसका रोज़ा मान्य नहीं होता। अतः, रोज़ा के दौरान आत्म-नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण है, और सिर्फ आत्म-इच्छा के मुताबिक कुछ भी नहीं खाना चाहिए।

रोज़ा रखने की दुआ (Roza Rakhne ki Dua)

रोज़ा रखने की दुआ

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रोज़ा रखते समय, सहरी खाने से पहले यह दुआ पढ़ी जाती है। इस दुआ का मतलब है कि “मैं इस रमज़ान के रोज़े की नियत करता/करती हूं।” यह दुआ अरबी में है और इसकी पढ़ाई अरबी में होती है। रोज़ा रखने के पहले हर रोज़ेदार को इस दुआ को पढ़कर अपनी नियत को साबित करना होता है, जिससे उनका रोज़ा सही और स्वीकृत हो। यह दुआ इस्लाम में बड़े आदाब और अहमियत वाली है, और हर मुस्लिम इसे सही तरीके से पढ़ने का प्रयास करता है। रोज़ा रखने की दुआ मुसलमानों को अपने धार्मिक कर्तव्य को सावधानी से निभाने का संकेत देती है, साथ ही उन्हें इस शानदार महीने की बरकत और रोज़ाने की महत्वता को समझाती है।

हिंदी में रोज़ा रखने की दुआ (Roza Rakhne ki Dua in Hindi)

हिंदी में रोज़ा रखने की दुआ

‘व बि सोमि गदिन नवई तु मिन शहरि रमज़ान’

इंग्लिश में रोजा रखने की दुआ (Roza Rakhne ki Dua in English)

इंग्लिश में रोजा रखने की दुआ

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‘Wa bisawmi ghaddan nawaiytu min shahri ramadan’

उर्दू में रोजा रखने की दुआ (Roza Rakhne ki Dua in Urdu)

و بِسُوْمِ غَدَانَ نوائیتو من شہرِ رمضان

यह दुआ अरबी भाषा में है जिसका मतलब होता है मैं रमज़ान के इस रोज़े की नियत करता/ करती हूं।

रोज़ा खोलने की नियत (Roza Kholne ki Niyat)

रोज़ा खोलने की नियत

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रोज़ा खोलने की नियत इफ्तार के दौरान की जाती है। इसमें एक रोज़ेदार अल्लाह की रज़ा के लिए दुआ पढ़ता है और रोज़ा खोलता है। यह नियत पहले नहीं की जाती। अगर आप पहले करेंगे तो रोज़ा टूट जाता है और सारी मेहनत बेकार हो जाती है। इस नियत में रोज़ेदार की इच्छा होती है कि वह अल्लाह की रज़ा के लिए रोज़ा खोल रहा है।

रोज़ा खोलने का तरीका (Roza Kholne ka Tarika)

रोज़ा खोलने के वक्त को इफ्तार के नाम से जाना जाता है। यह वक्त सूरज ढलने के बाद से शुरू होता है। इस दौरान मगरिब की अज़ान होती है और फिर खजूर खाकर रोज़ा खोला जाता है। इफ्तार करने के तुरंत बाद मगरिब की नमाज़ अदा की जाती है। इस अवसर पर मुसलमान खाने पीने के साथ-साथ अल्लाह की इबादत करते हैं और एक-दूसरे के साथ भाईचारा और मोहब्बत का माहौल बनाते हैं।

रोज़ा खोलने की दुआ (Roza Kholne ki Dua)

रोज़ा खोलने से पहले हर मुसलमान को यह दुआ पढ़ना वाजिब है। इस दुआ को पढ़ने से न सिर्फ सवाब बढ़ जाता है बल्कि खाने में भी बरकत होती है। यह दुआ खजूर खाने से पहले पढ़ी जाती है और दुआ खत्म होने के बाद ही कुछ खाया जाता है। इस दुआ में रोज़ा खोलने के साथ ही अल्लाह के बंदों की आमनत, भरोसा, और रोज़ा के रिज़क़ का भरोसा किया जाता है। यह दुआ रोज़ा खोलने के अद्भुत अवसर पर उन्नति और आत्म-विश्वास का एहसास दिलाती है।

हिंदी में रोज़ा खोलने की दुआ (Roza Kholne ki Dua in Hindi)

हिंदी में रोज़ा खोलने की दुआ

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‘अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुमतु, व-बिका आमन्तु, व-अलयका तवक्कालतू, व- अला रिज़क़िका अफतरतू’

इंग्लिश में रोजा खोलने की दुआ (Roza Kholne ki Dua in English)

इंग्लिश में रोजा खोलने की दुआ

‘Allahumma inni laka sumtu wa bika amantu wa ‘alayka tawakkaltu wa ‘ala rizqika aftartu’

उर्दू में रोजा खोलने की दुआ (Roza Kholne ki Dua in Urdu)

اللہم انّی لکا سمتو و بکا امانت و علیکا توکلتو وعلی رزقک افطرت

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रोज़ा रखने और खोलने की दुआ एक मुस्लिम के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। ये दुआएं न केवल इबादत का हिस्सा होती हैं, बल्कि उसकी आत्म-विश्वास को भी बढ़ाती हैं। रोज़ा रखने की दुआ से रोज़ेदार अपने इरादे को मजबूती से प्रकट करता है और अपने अल्लाह के सामने अपनी नियत को साफ करता है। साथ ही, रोज़ा खोलने की दुआ भी रोज़ेदार के लिए एक आशीर्वाद का कार्य करती है, जो उसकी इबादत को पूरा करते हुए उसके द्वारा किए गए सभी साथियों को समर्पित होती है।

इन दुआओं के माध्यम से मुसलमान अपने धार्मिक और आध्यात्मिक संबंध को मजबूत करते हैं और अपनी इबादत को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुँचाते हैं। यह दुआएं उन्हें अपने अल्लाह के साथ गहरी सम्बन्ध बनाए रखने में सहायक होती हैं और उन्हें अपने धार्मिक मार्ग पर निरंतर चलने में साहस प्रदान करती हैं। ये दुआएं मुस्लिम समुदाय के विविध आयामों को मिलकर साझा करने और समर्थन करने का भी एक माध्यम हैं।

आखिरकार, ये दुआएं मुस्लिम समुदाय के लिए एक स्रोत के रूप में काम करती हैं, जो उन्हें उनके धार्मिक और सामाजिक जीवन में संतुलन और नेतृत्व प्रदान करती हैं। इस प्रकार, रोज़ा रखने और खोलने की दुआ न केवल इबादत का एक अहम हिस्सा होती है, बल्कि उसके लिए एक मार्गदर्शक भी होती है जो उसको अपने धार्मिक सफलता और सामाजिक समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करती है।

FAQs:-

1. सवाल: रोज़ा क्या है?
उत्तर: रोज़ा मुस्लिमों की एक धार्मिक प्रथा है जिसमें रमज़ान महीने के दौरान वे रोज़ा रखते हैं, जिसमें वे रोज़ेदार दिनभर भोजन, पानी, और अन्य भौतिक आवश्यकताओं से रोकते हैं।

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2. सवाल: रोज़ा कितने घंटे का होता है?
उत्तर: रोज़ा फज्र आजान से लेकर मग़रिब आजान तक का होता है, जो लगभग १४-१६ घंटे का होता है, जो कि सूर्यास्त तक रोज़ेदार भोजन को रोकने के लिए होता है।

3. सवाल: रोज़ा रखने की नियत कैसे की जाती है?
उत्तर: रोज़ा रखने से पहले सहरी के बाद इस दुआ को पढ़कर अपनी नियत को पाक बनाया जाता है।

4. सवाल: रोज़ा खोलने की दुआ क्या है?
उत्तर: रोज़ा खोलने की दुआ ‘अल्लाहुम्मा लका सुमतु…’ है। इसे इफ्तार के समय पढ़ा जाता है।

5. सवाल: क्या रोज़ा तोड़ने के लिए कुछ करना पड़ता है?
उत्तर: हां, अगर किसी को रोज़ा तोड़ना होता है, तो उसे कफारा अदा करना पड़ता है या उसे एक दिन के लिए रोज़ा पुनः रखना पड़ता है।

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6. सवाल: रोज़ा रखने के दौरान पानी पी सकते हैं?
उत्तर: नहीं, रोज़ा रखते समय खाने-पीने की सभी चीज़ों से रोका जाता है, जिसमें पानी भी शामिल है।

7. सवाल: रोज़ा रखने के दौरान क्या किया जा सकता है?
उत्तर: रोज़ा रखने के दौरान लोग इबादत, रमज़ान की किताबों की तिलावत, और दूसरे धार्मिक गतिविधियों में शामिल होते हैं।

8. सवाल: क्या रोज़ा रखने के दौरान नमाज़ पढ़ी जा सकती है?
उत्तर: हां, रोज़ा रखते समय नमाज़ पढ़ी जा सकती है, लेकिन ध्यान देना चाहिए कि उसके दौरान पानी या कोई और चीज़ ना खाई जाए।

9. सवाल: रोज़ा रखने के दौरान दवा ले सकते हैं?
उत्तर: हां, अगर कोई व्यक्ति बीमार है तो वह डॉक्टर की सलाह ले कर दवा ले सकता है।

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