भारत में भगवान श्री कृष्ण की पावन धरा वृंदावन में होली का त्योहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। इस बार मथुरा के गोपीनाथ मंदिर में बूढ़ी एवं विधवा माताओं के लिए विशेष अयोजन किया गया है जहा 23 मार्च को होली का उत्सव मनाया जाएगा। जिसकी तैयारियां अभी से शुरू कर दी गई हैं। ब्रज की होली न सिर्फ देश बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर बहुत प्रचलित है। विधवा महिलाओं,बूढी माताओं के लिए हर साल ये विशेष आयोजन किया जाता है।
इस दिन अलग-अलग जगह से लोग खास तौर पर होली का कार्यक्रम देखने के लिए आते हैं। इस बार विशेष तौर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम में बूढ़ी और विधवा महिलाओं को प्राथमिक तौर पर ज्यादा से ज्यादा संख्या में शामिल कर हर्षोउल्लास से मनाया जाएगा। हालांकि, ये सिलसिला पिछले कई सालों से लगातार चला आ रहा है.
कई बड़े संगठन और सरकार मिलकर इस उत्सव को सफल बनाती है।
सरकार और प्राइवेट संगठनों द्वारा आयोजित किए जाने वाला यह रंगोत्सव इस बार वृंदावन के गोपीनाथ मंदिर में मनाया जाएगा। कार्यक्रम में हजारों की संख्या में लोग उमड़ते हैं और होली का त्योहार मनाते हैं. यह प्रयास दरअसल बूढ़ी एवं विधवाओं माताओं के जीवन में खुशियां भरने का एक माध्य माना जाता है. इस कार्यक्रम का आयोजन प्रत्येक वर्ष किया जाता है. इस बार भी होने वाले आयोजन में माताएं फूलों और गुलाल की होली खेलेंगी।
बूढ़ी और विधवा महिलाओं को क्यों शामिल किया जाता है।
ब्रज में आयोजित इस उत्सव में ऐसी माताएं शामिल होती हैं जिनके जीवन में कोई खुशियां नहीं होती, साथ ही वे अपने परिवार से अलग हो जाती है और एक ऐसी जगह आकर रहने लगती हैं जहां उनका कोई नहीं होता। वह बिल्कुल अकेले रहकर जीवन यापन करती हैं या फिर नगर के महिला आश्रय सदनों में रहकर अपना जीवन बिताती हैं जी. मथुरा वृंदावन में रहने वाली ऐसी बूढ़ी एवं विधवा माताएं होली पर इस कार्यक्रम में समलित होती है, जहां वे धूम-धाम और खुशी के साथ होली खेलती हैं।
वृन्दावन की विधवाएँ: अलगाव की एक कहानी
हालाँकि, दशकों तक, सफ़ेद रंग में लिपटे वृन्दावन की भी एक अलग कहानी रही। सामाजिक मानदंडों से बहिष्कृत विधवाओं को इस मंदिर शहर में शरण मिली है जहां कई विधवाएं एक साथ रहती है और भगवान श्री कृष्ण की भक्ति करती है । कई बार सफ़ेद साड़ियाँ पहने हुए, उन्हें अलगाव और कठिनाई का सामना करना पड़ता है । होली और दिवाली जैसे उत्सवों में भाग लेने से इनकार करने के कारण, उनके जीवन में कृष्ण की भूमि में निहित जीवंतता का अभाव है। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप और एक गैर-सरकारी संगठन सुलभ इंटरनेशनल के समर्पित प्रयासों की बदौलत 2012 में इस कहानी में बदलाव आना शुरू हुआ। और अब कई विधवा महिलाएं हर त्यौहार को सेलिब्रेशन करने लगी है।
विधवाओं के जीवन में घुला रंग
सशक्तिकरण और सामाजिक समावेशन के उद्देश्य से चेंजचैंपियन की शुरुआत करते हुए सुलभ इंटरनेशनल कैंपिंग ने वृन्दावन की विधवाओं के जीवन को बदलने के लिए एक मिशन शुरू किया, एक महत्वपूर्ण पहल गोपीनाथ मंदिर में उनके लिए एक विशेष होली उत्सव की शुरुआत थी। यह सिर्फ रंगों के बारे में नहीं था; यह आनंद को पुनः प्राप्त करने, सामाजिक स्वीकृति को बढ़ावा देने और इसे वापस वृन्दावन की जीवंत टेपेस्ट्री में बुनने के बारे में था
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, 2013 से पहले, ये खिड़कियां केवल “ठाकुरजी” (भगवान कृष्ण) को रंग चढ़ाकर होली में भाग ले सकती थीं। विधवाओं द्वारा आपस में जश्न मनाने की परंपरा ने एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया। इस तरह के पहले उत्सव में रंग और हंसी का आनंदमय विस्फोट देखा गया। विधवाएँ, जो आमतौर पर सफेद रंग की साडी में रहती थी वह अब लाल और गुलाबी रंग के बहुरूपदर्शक में रंग जाती है। वृन्दावन में विधवा महिलाएं एक दूसरे पर सुगंधित फूलों की पंखुड़ियों की वर्षा करती हैं। कृष्ण की स्तुति में गाए जाने वाले भक्ति गीतों (भजन) से वातावरण कृष्णन मयी करती है। उनकी आवाजें नई मिली स्वतंत्रता और जीवन के उत्सव का प्रमाण हैं। इन महिलाओं को जीवंत रंगों के बीच नृत्य करते और आनंद लेते हुए देखना उस मोनोक्रोम अस्तित्व के लिए एक शक्तिशाली प्रतिवाद प्रस्तुत करता है जिसे वे अक्सर सहन करती थीं।
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