वृंदावन की फूलों वाली होली: परंपरागत उत्सव का महत्व और अनूठे रंगीन रंग

वृंदावन की फूलों वाली होली: परंपरागत उत्सव का महत्व और अनूठे रंगीन रंग

Phoolwali holi at Vrindavan

भारत में होली हो और वृन्दावन का जिक्र ना करे तो सब कुछ अधूरा है। वृन्दावन की फूलो वाली होली और वहा के रस में डूबे भक्तगण का किसी भी शब्दो में बखान नहीं किया जा सकता वृन्दावन में इस बार 21 मार्च को फूलों वाली होली मनाई जाएगी। वृंदावन में फूलों वाली होली का लुत्फ कई विदेशी पावने उठाते है। हर साल की तरह यहाँ देश – विदेश से आये सेलानी वृन्दावन की फूलों की होली को अटेंड करते है। वृन्दावन में फूलों वाली होली प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में आयोजित एक अनोखा और मनमोहक उत्सव है। “फूलों की होली” के रूप में अनुवादित , इस कार्यक्रम की विशेषता जीवंत फूलों की पंखुड़ियों की आनंदमय वर्षा है। दुनिया भर से भक्त मंदिर में इकट्ठा होते हैं, जहां पुजारी रंग-बिरंगे फूल फेंकते और बांटते हैं, जिससे एक सुगंधित और दृश्यमान आश्चर्यजनक वातावरण बनता है। जब लोग आध्यात्मिक और आनंदमय माहौल का आनंद लेते हैं तो हवा फूलों की मीठी खुशबू से भर जाती है। फूलों वाली होली एक शांत और सुरम्य अनुभव प्रदान करती है, जो वृन्दावन के होली उत्सव की सांस्कृतिक सजावट में प्राकृतिक सुंदरता का स्पर्श जोड़ती है।
गौरतलब है की बसंत पंचमी से ही ब्रज में होली  का शुभारंभ हो जाता है।  करीब 40 दिन चलने वाली ब्रज की होली का अंदाज ही अलग होता है।  विश्‍व भर में एकमात्र ब्रज ही ऐसी जगह है जहां फूल, रंग, गुलाल, लड्डू, लठ्ठ आदि सभी चीजों से होली खेली जाती है, यही वजह है कि इसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं।  मंदिरों में प्रिया-प्रियतम यानि राधा-कृष्‍ण तो होली खेलते ही हैं, इस रंग और गुलाल में भक्‍त भी सराबोर होकर आते हैं।  खासतौर पर बरसाना, वृंदावन, मथुरा, नंदगांव और दाऊजी के मंदिरों में अलग-अलग दिनों में होली धूमधाम से मनाई जाती है, हालांकि फुलैरा दौज से फूलों की होली का आयोजन ब्रज के सभी प्रमुख मंदिरों में हो जाता है।
बरसाना के राधारानी में मंदिर में फुलैरा दौज के दिन पूरे दिन फूलों की होली होती है।  मंदिर के सेवायत आने वाले भक्‍तों पर फूल बरसाते हैं।  फूलों की होली को लेकर बरसाना के राधारानी निज महल, राधा रानी मंदिर के फुलैरा दौज के दिन मंदिर में गुलाब के फूल और गेंदा के फूलों से होली खेली जाएगी

भगवान् श्री कृष्ण की लीला का बखान

Phoolwali holi at Vrindavan
भगवान कृष्ण को समर्पित इस बहुत पुराने मंदिर में भक्त और स्थानीय लोग पारंपरिक और आनंदमय समारोहों/पार्टियों के साथ रंगों के विशेष उत्सव को मनाने के लिए इकट्ठा होते हैं। भगवान कृष्ण की चंचल भावना को दर्शाते हुए, रंगों के ऊर्जावान खेल में लोगों को देखने के लिए मंदिर एक पूर्ण जीवन दृश्य में बदल जाता है। मंदिर के पुजारियों के नेतृत्व में, उत्सव में भगवान को रंगीन अबीर (पाउडर) लगाना और इसे भक्तों के बीच वितरित करना शामिल है। द्वारकाधीश मंदिर में होली स्पष्ट रूप से जीवन और ऊर्जा से भरपूर और मजेदार कार्यक्रमों के साथ विशेष उत्सव की आनंदमय भावना को दर्शाती है।

होली क्यों मनाई जाती है और इसका महत्व:

 होली वसंत के आगमन और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है। इस त्यौहार से बहुत सारी किंवदंतियाँ जुड़ी हुई हैं, जिनकी जड़ें हिंदू पौराणिक कथाओं में हैं। राक्षसी होलिका और भगवान विष्णु भक्त प्रह्लाद की कहानी व्यापक रूप से बताई जाती है। परंपरा यह है कि होलिका ने प्रह्लाद को जिंदा जलाने का प्रयास किया, लेकिन प्रह्लाद की भक्ति के कारण वह सुरक्षित बच गया और होलिका आग की चपेट में आकर जल गई। रंगों से खेलना एक ऐसी परंपरा है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना भगवान कृष्ण ने की थी, जिसकी चंचल गतिविधियां भी होली से जुड़ी हुई हैं। सामान्य तौर पर, होली सामाजिक और धार्मिक सीमाओं से परे है और खुशी, प्यार और रिश्तों के पुनर्जन्म का समय है।
होली का बहुत बड़ा सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व है, इसमें विभिन्न विषय शामिल हैं जो इसके महत्व में योगदान करते हैं।
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